समाजशास्त्री बोडीलॉर्ड ने समकालीन समाज के अपने विश्लेषण में कहा है कि आज जो टीवी है, वही समाज है। टीवी और समाज इतना घुल-मिल गए हैं कि यह कहना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि संकेत क्या हैं और यथार्थ क्या। इस तरह उत्तर आधुनिक समाज संकेतों का समाज है. बोडीलार्ड की चिंता है कि इन संकेतो का जो सबसे बड़ा खामियाजा हमें भुगतना पड़ा और जिसने हमारी चेतना पर कब्जा किया वह यह कि लोग गलत को सही मानने लगे। हम जानते हैं कि अमुक पेस्ट के इस्तेमाल से हमारे दांत इतने चमकदार नहीं हो सकते जितने टीवी में दिखाए जा रहे हैं, लेकिन टीवी से निकली छवि का कब्जा हमारी चेतना पर इतना हावी है कि हम उन संकेतो पर यकीन कर लेते हैं।
बाजारीकरण के दायरे में देखें तो बोडीलार्ड की यह सोच हमेशा सही बनी रहेगी कि आधुनिक समाज संकेतों का समाज है। लेकिन यही बाजार आगे बढ़ते हुए बोलीलॉर्ड की इस सोच में सुधार कर एक नया जुमला गढ़ रहा है कि अब समाज टीवी से संकेत नहीं ग्रहण कर रहा है, टीवी को समाज से संकेत मिल रहे हैं। विज्ञापन युग ने इसे बार्टर सिस्टम में बदल दिया है कि अगर आपको अपने उत्पाद को मजबूत करना है तो उसकी ब्रांडिंग को समाज के समकालीन मुद्दों से जोड़ना होगा। याद कीजिए हालिया क्रिकेट विश्वकप जब बिस्कुट से लेकर बाइक तक और कलम से लेकर कार तक सभी विज्ञापनों की थीम क्रिकेट के मैदान से ही निकल रही थी। बाजार ने समझ लिया है कि अगर टिके रहना है तो ब्रांड को समकालीनता से जोड़ना होगा। और इसके लिए संकेत समाज से ही ग्रहण करने होंगे। आए दिन ऐसे मुजाहिरे गौरतलब हैं।
हाल ही में केरल विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने 87 वर्षीय अच्युतानंदन की बढ़ती उम्र का जिक्र किया. इसी के जबाव में सीपीएम नेता अच्युतानंदन ने राहुल को अमूल बेबी कहा. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी केरल में अमूल बेबीज के प्रचार के लिए आए हैं क्योंकि वह खुद भी अमूल बेबी हैं. इन दो तरफा टिप्पणियों ने राजनीतिक हलकों में बहस का रूप ले लिया। कांग्रेस के कई नेता अच्युतानंद के खिलाफ खड़े हो गए तो भाजपा ने भी करुणानिधि की बढ़ती उम्र को इस बहस में घसीट लिया। इस जद्दोजहद के बीच बाजार ताक में था। और दुग्ध उत्पादों की कंपनी अमूल ने इस बयानबाजी का फायदा उठाते हुए अपना नया विज्ञापन तैयार कर दिया. इस विज्ञापन में राहुल गांधी व अच्युतानंद दोनों को ही अमूल बेबी साबित कर दिया गया। कंपनी ने अपने उत्पादों के लिए समाज से संकेत ग्रहण किया और समाज उस संकेत को और भी सही साबित करने पर तुला हुआ है। कांग्रेसी सांसद और पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे शशि थरूर ने ट्वीट कर अमूल बेबी पर अपनी राय देते हुए कहा कि अमूल बेबी, चुस्त-दुरुस्त, स्वस्थ और भविष्य के प्रति एकाग्र पीढ़ी को दर्शाता है। लेकिन यहां बहस अमूल बेबी की नहीं, इस बात कि है कि समाज को टीवी से संकेत मिल रहे हैं या टीवी को समाज से। जब राहुल गांधी ने मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर किया था तब भी अमूल ने एक विज्ञापन बनाया था उसे नाम दिया गया था "चलती का नाम गांधी."
इसके पहले भी जब राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर अभिनेता अमिताभ बच्चन, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और उद्योगपति अंबानी बंधु किन्हीं वजहों से सुर्खियों में आए तब अमूल ने इन पर विज्ञापन पेश किए। हाल में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम पर अमूल के विज्ञापन की कैच लाइन थी, "हजारे ख्वाहिशें ऐसी."
उदाहरणों की यह फेहरिश्त केवल अमूल तक ही सीमित नहीं है। कुछ दिनों पहले जब फिल्म दबंग के एक गाने में मुन्नी को बदनाम करते हुए झंडू बाम किया गया तो पहले तो इमामी लिमिटेड ने इस बात पर आपत्ति जताई कि बिना इजाजत के उनके नाम का इस्तेमाल किया गया, लेकिन इसी बीच कंपनी के अधिकारियों को लगा कि इस गाने के बाद झंडू बाम की बिक्री में एकाएक इजाफा हो गया है और इसकी बाकायदा घोषणा भी हुई। बाद में इमामी ने अपने उत्पाद झंडू बाम के इसी गाने को प्रचार के तौर पर पेटेंट किया।
समाज से पैदा हो रहे इन संकेतो को लाभ में बदलने का तरीका मीडिया के हर माध्यम ने अपनाया है। जब मायावती का मूर्ति प्रेम राजनीतिक सुर्खियां बटोर रहा था, तब सोशल नेटवर्किंग साइट आईबीबो ने इस सुर्खी को लाभ का माध्यम बनाया। और कंपनी ने ऐसा गेम ल़ॉन्च किया जिसमें आपको मायावती की मूर्ति में माला फेंकना है और जिसकी माला मायावती के गले में पड़ रही थी उसे प्वाइंट मिल रहे थे। अभी हाल ही में अन्ना हजारे के अनशन को सोशल गेमिंग नेटवर्क ने जमकर भुनाया। आईबीबोडॉट कॉम ने यस प्राइम मिनिस्टर नाम से एक गेम शुरू किया जिसमें अन्ना हजारे कुर्ते व गांधी टोपी में नजर आते हैं। यह गेम भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए खेला जा रहा है। आईबीबो ने यह गेम एक अप्रैल को लॉन्च किया था और पांच अप्रैल को इसके उपयोगकर्ताओं की संख्या ढेड़ लाख थी। भ्रष्टाचार विरोधी लहर को भुनाते हुए कई और भी गेमिंग साइट्स ने ऐसे गेम लॉन्च किए जिसमें आप आभासी दुनिया में व्यवस्था से भ्रष्टाचार दूर कर सकते हैं।
ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं। और ये उदाहरण इस बात की तस्दीक करते हैं कि बाजार हमेशा मौके खोजता है। इस मौके के संकेत चाहे समाज से टीवी को मिले या टीवी से समाज को। अमूल बेबी के तमगे ने अमूल की ब्रांडिंग के लिए मौके दिए हैं। हो सकता है कि जिस तरह नेताओं के ऊपर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों की फेहरिश्त लंबी होती जा रही है ऐसे में उनकी शख्सियत को विज्ञापन के किसी जुमले में फिट करना मुश्किल नहीं होगा। राहुल के अमूल बेबी बनने के बाद हो सकता है कि कोई राजनेता बबूल बेबी बन जाए , क्योंकि बबूल टूठपेस्ट की तो पंच लाइन ही है... बबूल- बबूल पैसे वसूल।
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